Thursday, March 17, 2011

आपका संदेश घर-घर पहुंचाने का संकल्प अपने आप ही सघन होता जा रहा है

प्रश्न: भगवान, आपका संदेश घर-घर पहुंचाने का संकल्प अपने आप ही सघन होता जा रहा है। समाज हजार बाधाएं खड़ी करेगा, कर रहा है। जीवन भी संकट में पड़ सकता है। मैं क्या करूं?



नीरज, जीवन तो संकट में है ही; मौत तो आएगी ही। इसलिए अब और जीवन संकट में क्या पड़ सकता है? मौत से बड़ी और क्या दुर्घटना हो सकती है? लोग बिगाड़ क्या लेंगे? ऐसे ही सब छिन जाने वाला है। इसलिए घबड़ाहट क्या? चिंता क्या? जहां सब लुट ही जाने वाला है, वहां तो घोड़े बेच कर सोओ, फिकर छोड़ो! लोग क्या करेंगे? लोग क्या छीन लेंगे? और लोग जो अड़चनें पैदा करेंगे, अगर तुम में समझ हो तो हर अड़चन साधना बन जाएगी। लोग बाधाएं डालेंगे, अगर तुम में थोड़ी समझ हो तो हर बाधा सीढ़ी बन जाएगी। लोग अड़चन पैदा करें, बाधा पैदा करें, इससे तुम्हारे भीतर आत्मा सघन होगी, मजबूत होगी, एकाग्र होगी।



घबड़ाओ मत। अगर संकल्प जग ही रहा है तो तुम क्या कर सकते हो अब? संदेश को पहुंचाना ही होगा! यह तुम्हारे बस के बाहर बात है। अगर परमात्मा तुम्हारे भीतर से कोई गीत गाना ही चाहता है तो गाकर रहेगा। और जब गाना ही चाहता है तो फिर तुम दिल से, पूरे दिल से साथ हो जाओ, ताकि गीत पूरा प्रकट हो, ऐसा अटका-अटका न हो।

चला है राहे-वफा में तो मुस्कुराता चल!
हवादसात के बरबत पै गीत गाता चल!
कमाले-आगही-ओ-कैफे-जुस्तजू लेकर
हिजाबे-दानिशो-होशो-खिरद उठाता चल!
तगैयुराते-जमाने को देके हुक्मे-सबात
मवालिगाते-जहां का मजाक उड़ाता चल!
गिरोहे-अहलेत्तलब के बुझे-बुझे से हैं दिल
चिरागे-मंजिले-मकसूद को जलाता चल!
अजीयतों से उठा लुत्फे-जिंदगी ऐ दोस्त!
हर-एक दर्द को दरमाने-गम बनाता चल!
दिखाके सोजे-मुहब्बत की ताबनाकी को
जहाने-शौक में इक आग सी लगाता चल!
मजाजे-बेहिसीए-जिंदगी को जल्द बदल
पयामे-अख्तरे-आतिशनवा सुनाता चल!
एक गीत तेरे भीतर पैदा होना शुरू हुआ, नीरज, होने दो पैदा।
चला है राहे-वफा में तो मुस्कुराता चल!
रास्ता ठीक है तो मुस्कुराते चलो, डर क्या!
हवादसात के बरबत पै गीत गाता चल!
आपत्तियां तो आएंगी, आपत्तियों के साज को बजाओ; उन्हीं पर गीत गाओ।
कमाले-आगही-ओ-कैफे-जुस्तजू लेकर
उत्साह और उमंग से, ज्ञान और खोज की अभीप्सा से...।
हिजाबे-दानिशो-होशो-खिरद उठाता चल!

बुद्धि पर पड़े जितने परदे हैं, वे सब हटा दो अब। अपने भी हटाओ, दूसरों के भी हटाओ। परदे हटाने हैं, लोगों के घूंघट हटाने हैं; क्योंकि घूंघटों के भीतर परमात्मा छिपा है।
तगैयुराते-जमाने को देके हुक्मे-सबात
युग को परिवर्तन की आवाज देनी है।
मवालिगाते-जहां का मजाक उड़ाता चल!

और दुनिया तो उपद्रव खड़े करेगी; उसके अंधविश्वास, उसकी धारणाएं उपद्रव खड़ा करेंगी। हंसते हुए चलो, मजाक करो। घबड़ाओ मत। दुनिया के अंधविश्वासों का मजाक उड़ाओ। हंसते हुए चलना है, गंभीरता से भी नहीं।
गिरोहे-अहलेत्तलब के बुझे-बुझे से हैं... जरा देखो, लोगों की जिंदगी के चिराग बहुत बुझे-बुझे से हैं। यात्री-दल चल रहा है, और बिना चिराग, बिना मशालों के!
गिरोहे-अहलेत्तलब के बुझे-बुझे से हैं दिल
यात्रा करने वालों के दिल भी बुझे-बुझे से हैं।
चिरागे-मंजिले-मकसूद को जलाता चल!
हिम्मत करो, थोड़े दीये जलाओ! थोड़ी रोशनी करो!
अजीयतों से उठा लुत्फे-जिंदगी ऐ दोस्त!

और ये जो दीये जलेंगे, ये ही तुम्हारे आनंद का कारण बन जाएंगे, ये ही तुम्हारे उत्सव का कारण बन जाएंगे। इस जगत में इससे बड़ी और कोई सौभाग्य की घड़ी नहीं है जब तुम किसी अंधेरे आदमी की जिंदगी में दीया जलाने में सफल हो जाओ। तुम्हारे हाथ से अगर किसी की जिंदगी में एक फूल भी खिल जाए तो इससे बड़ी और कोई धन्य घड़ी नहीं है।
अजीयतों से उठा लुत्फे-जिंदगी ऐ दोस्त!
हर-एक दर्द को दरमाने-गम बनाता चल!

और कष्ट तो आएंगे, लेकिन उन सारे कष्टों को तुम्हारे गीतों में जोड़ लो। उन सारे कष्टों को तुम्हारी सीढ़ियों में जोड़ लो। उन सारे कष्टों को भी प्रभु का प्रसाद समझो। परमात्मा जो भी देता है, ठीक ही देता है। उसकी मर्जी पूरी हो!
ओशो

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